ब्रह्म-विज्ञान के 24 ग्रंथ, गायत्री के 24 अक्षर
सनातन धर्म में वेदों को सबसे ऊपर रखा गया है। सम्पूर्ण वेद ग्रंथों को ब्रह्म-विज्ञान भी कहते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों की तरह ही ब्रह्म-विज्ञान ग्रंथों की संख्या भी कुल 24 ही है। इनमें 4 वेद, 4 उपवेद, 4 ब्राह्मण, 6 दर्शन और 6 वेदांग हैं। इनका जोड़ 24 है। तत्त्वज्ञानियों का मानना है कि गायत्री के 24 अक्षरों की व्याख्या के लिए इन 24 शास्त्रों का निर्माण हुआ है।
हमारा शरीर और गायत्री के 24 अक्षर
अब आइए आपको बताते हैं कि हृदय को जीव का और ब्रह्मरंध्र को ईश्वर का स्थान माना गया है। हृदय से ब्रह्मरंध्र की दूरी 24 अंगुल है। इस दूरी को पार करने के लिए 24 कदम उठाने पड़ते हैं। 24 सद्गुण अपनाने पड़ते हैं- इन्हीं को 24 योग कहा गया है। विराट् ब्रह्म का शरीर 24 अवयवों (Components) वाला है। मनुष्य शरीर के भी प्रधान अंग 24 ही हैं।
सूक्ष्म शरीर की शक्ति प्रवाहिकी नाड़ियों में भी 24 प्रधान नाड़ियां हैं। इनमें गर्दन में 7, पीठ में 12, कमर में 5 इन सबको मेरुदण्ड यानी स्पाइनल कॉर्ड के 'सुषुम्ना' परिवार का अंग माना गया है।
अष्ट सिद्धि और नौ निधियों की अघिष्ठात्री
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों को अष्टसिद्धि और नवनिद्धियों (ये हनुमान जी को प्राप्त हुईं) की अधिष्ठात्री माना गया है। इन दोनों के समन्वय से ही शुभ गतियाँ प्राप्त होती हैं।
24 तत्व और 24 अक्षर
सांख्य दर्शन के अनुसार यह सारा सृष्टिक्रम 24 तत्त्वों के सहारे चलता है। उनका प्रतिनिधित्व गायत्री के 24 अक्षर करते हैं।
'योगी याज्ञवल्क्य' नामक ग्रंथ में गायत्री की अक्षरों का विवरण दूसरी तरह लिखा है-
र्कम्मेन्दिरयाणि पंचैव पंच बुद्धीन्दि्रयाणि च ।।
पंच पंचेन्द्रिरयार्थश्च भूतानाम् चैव पंचकम्॥
मनोबुद्धिस्तथात्याच अव्यक्तं च यदुत्तमम् ।।
चतुर्विंशत्यथैतानि गायत्र्या अक्षराणितु॥
प्रणवं पुरुषं बिद्धि र्सव्वगं पंचविशकम्॥
पंच पंचेन्द्रिरयार्थश्च भूतानाम् चैव पंचकम्॥
मनोबुद्धिस्तथात्याच अव्यक्तं च यदुत्तमम् ।।
चतुर्विंशत्यथैतानि गायत्र्या अक्षराणितु॥
प्रणवं पुरुषं बिद्धि र्सव्वगं पंचविशकम्॥
यानी, पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां, पांच तत्त्व, पांच तन्मात्राएं (शब्द, रूप, रस, गंध, स्पर्श) यह कुल बीस हुए, इनके अतिरिक्त अन्तःकरण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) यह चौबीस हो गये। परब्रह्म पुरुष इन सबसे ऊपर पच्चीसवां हैं।
ऐसे- ऐसे अनेक कारण और आधार हैं, जिनसे गायत्री में 24 अक्षर ही क्यों हैं, इसका समाधान मिलता है।
महाभारत और गायत्री के 24 अक्षर
प्राचीन काल में 'महाभारत', 'भारत-संहिता' के नाम से ही लोक विख्यात था। उसमें कुल 24,000 श्लोक थे। ''चतुर्विंशाति साहस्रीं चक्रे भारतम्''। इस प्रकार अन्य महत्त्वपूर्ण प्राचीन ग्रंथ रचियताओं ने किसी ना किसी रूप में गायत्री के महत्त्व को स्वीकार करते हुए उसके प्रति किसी ना किसी रूप में अपनी श्रद्धा व्यक्त की है।
वाल्मीकि रामायण और गायत्री के 24 अक्षर
वाल्मीकि रामायण में हर एक हजार श्लोकों के बाद गायत्री के एक अक्षर का सम्पुट है। श्रीमद् भागवत के बारे में भी यही बात है।
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