मंगलवार, 26 जुलाई 2016

इस जंगल में सिर्फ मुर्दों का राज

आज के दौर में यदि कोई आपसे कहें की एक जंगल ऐसा है जहां पर सिर्फ मुर्दों का ही कजा है तो या कोई भी इस बात पर विश्वास करेगा। यह बात अंधविश्वास ही लगेगा, लेकिन यह सच है। एक ऐसी जगह है जहां पर इंसानों का कोई भी हक नहीं है। जगंल की हर डाली, हर शाखा पर और यहां की घास फूस पर भी सिर्फ मुर्दो की ही हक है। यहां पर कोई भी उस जगंल की लकड़ी यूज नहीं कर सकता है। जंगल के तीन और मरघट बने हैं जबकि एक ओर सोमभद्रा बह रही है।
यह शहर- ए-खामोश का जंगल है। यहां की लकड़ी को सिर्फ शव जलाने के लिए ही इस्तेमाल में लाया जा सकता है। लगभग पांच वर्ग किलोमीटर में फैला यह घना जंगल अपने आप में प्रकृति की अदभुत रचना है। इसके बीचोंबीच स्थित द्रोण शिव मंदिर से जंगल के बाहरी हिस्सों में बने मरघटों का फासला करीब सात-सात सौ मीटर है। द्रोण शिव मंदिर के पुजारीयों का कहना है इस जंगल की लकड़ी को घर के चूल्हे में जलाना वर्जित है। जिस किसी ने भी यहां से लकड़ी अपने घर को ले जाने का प्रयास किया तो उसके साथ अनिष्ट ही हुआ। पुजारी बताते हैं कि प्राचीनतम द्रोण शिव मंदिर के प्रांगण में द्वापर युग में पांडव गुरू द्रोणाचार्य यहां पांडवों को धनुर्विद्या सिखाया करते थे। कहा जाता है कि करीब दो दशक पहले यहां सेना के नौ जवानों ने जंगल से लकड़ी काटी थी। लकड़ी की खेप को वे फौजी जिस ट्रक में ले जा रहे थे वह ट्रक करीब तीन किलोमीटर आगे जाकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।

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