1. चंद्रवंशी राजाओं की राजधानी विष्णु पुराण में काशी का वर्णन है। वहां लिखा हुआ है कि चंद्रवंशी राजा सुहोत्र के तीन पुत्र हुए काश्य, काश और गुत्समद। इनमें काश्य के पुत्र काशी ही काशी के सबसे पहले चंद्रवंशी राजा हुए।
काशयस्य काशेय काशिराज: (विष्णु पुराण 4.48.13)
2. कश्यप ऋषि ने की शिवलिंग की स्थापना, ब्रह्मा ने किया प्रतिष्ठापित
वायुपुराण (104.75) के अनुसार भगवान् शिव के जगत प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री विश्वेश्वर की प्रतिष्ठा यहीं काशी में है। इन्हें ही काशी विश्वनाथ के नाम से लोग जानते हैं। ऋषि कश्यप ने ही यहां शिवलिंग की स्थापना की है। इसे वेदों की भौंह में स्थित माना गया है। विष्णुपुराण के अनुसार स्वयं ब्रह्माजी ने यहां ज्योतिर्लिंग की प्रतिष्ठापना की है।
3. शिव कभी नहीं त्यागते इस शहर को
लोक विख्यात है कि काशी नगरी भगवान शिव को सबसे ज्यादा प्यारी है। मत्स्य पुराण के अनुसार भगवान् शिव ने माता पार्वती को बताया है कि मैं कभी इस क्षेत्र को कभी नहीं त्यागता, इसलिए इस क्षेत्र को 'अविमुक्त' क्षेत्र कहते हैं।
विमुक्तं न माया यस्मान्मोक्ष्यते वा कदाचना।
महत् क्षेत्रमिदं तस्मादविमुक्तमिदं स्मृतम्। (मत्स्य पुराण 180.54)
महत् क्षेत्रमिदं तस्मादविमुक्तमिदं स्मृतम्। (मत्स्य पुराण 180.54)
4. शिव इसलिए नहीं छोड़ते काशी
मत्स्य पुराण के अनुसार काशी को भगवान शिव का नित्य विहार स्थल कहा गया है। इसे शिवजी इसलिए नहीं छोड़ते कि एक बार ब्रह्महत्या पाप से पीड़त शिव कपाली बनकर सभी तीर्थों में घूमते रहे, पर यहीं आकर कपाल सहस्रों खंड में टूट गया। काशी को कपालमोचन तीर्थ भी कहते हैं।
कपाल मोचनं तिर्थमभूद्धत्याविनाशनम्।
मद्भवक्तास्तत्र गच्छन्ति विष्णुभक्तास्तथैकम्।। (मत्स्य 183.103)
मद्भवक्तास्तत्र गच्छन्ति विष्णुभक्तास्तथैकम्।। (मत्स्य 183.103)
5. स्वयं ब्रह्मा करते हैं इसकी रक्षा
यह ब्रह्मा का परम स्थान, ब्रह्मा द्वारा अध्यासित, ब्रह्मा द्वारा सदा सेवित और ब्रह्मा द्वारा रक्षित नगरी है। यहां पर किये जाने वाले स्नान, जप, तप होम, मरण, श्राद्ध, अर्चन सब भक्ति एवं मुक्तिदायक हैं। (अग्निपुराण, अध्याय 112)
6. क्योंकि सिर्फ यहीं होती है मोक्ष की प्राप्ति
काशी में कहीं पर भी मृत्यु के समय भगवान विश्वेश्वर (विश्वनाथजी) प्राणियों के दाहिने कान में तारक मन्त्र का उपदेश देते हैं। तारकमन्त्र सुन कर जीव भव-बन्धन से मुक्त हो जाता है। यह मान्यता है कि केवल काशी ही सीधे मुक्ति देती है, जबकि अन्य तीर्थस्थान काशी की प्राप्ति कराके मोक्ष प्रदान करते हैं। इस संदर्भ में काशीखण्ड में लिखा भी है -
अन्यानिमुक्तिक्षेत्राणिकाशीप्राप्तिकराणिच।
काशींप्राप्य विमुच्येतनान्यथातीर्थकोटिभि:।।
7. महाराज दिवोदास ने किया था नगर का विस्तार
महाराज दिवोदास के समय काशी नगरी क्षेमक नाम के एक दैत्य से आतंकित हुआ करती थी। उस वक्त दिवोदास ने ही उस दैत्य का वध किया और काशी की प्रजा को उसके अत्याचारों से मुक्ति दिलाई थी। राजा दिवोदास ने बाद में काशी नगरी का विस्तार किया था। काशी के इन्हीं प्रतापी राजा दिवोदास की सहायता से ब्रह्मा ने यहां दस अश्वमेध यज्ञ को संपादित किया था।
8. ये है महाश्मशान
महाश्मशान नाम से प्रख्यात है ये मोक्षदायिनी तीर्थ।
परं गुह्यां समरख्यातं श्मशानमिति संज्ञितम्।। (मत्स्य 184.5)
परं गुह्यां समरख्यातं श्मशानमिति संज्ञितम्।। (मत्स्य 184.5)
मत्स्य पुराण के ही अनुसार जो मनुष्य यहां यज्ञ संपन्न करता है उसका सैकड़ों, करोड़ों कल्पों में भी संसार में दुबार आगमन नहीं होता (मत्स्य 183.23-24)। मत्स्य पुराण के ही अनुसार इस अविमुक्त क्षेत्र सा परम पावन अन्य तीर्थस्थान संसार में न हुआ है, न होगा।
पृथिव्यामीदृशं क्षेत्रं न भूतं न भविष्यति। (मत्स्य 183.40)
9. अयोध्या से मित्रता, हस्थिनापुर से शत्रुता
रामायण काल यानी त्रेतायुग में काशी बड़ी ही वैभवशाली नगरी थी। वाल्मीकि रामायण के अनुसार काशी और अयोध्या में गहरी मित्रता थी। महाराज दशरथ ने अपने अश्वमेध यज्ञ में काशी नरेश को आमंत्रित भी किया था।
तथा काशिपतिं स्निग्धं सततं प्रियवादिनम्।
सद्धत्तं देव संकाशं स्वयमेवानयस्व ह।। (वा. रामायण 1. 13. 23)
सद्धत्तं देव संकाशं स्वयमेवानयस्व ह।। (वा. रामायण 1. 13. 23)
वहीं पांडवकाल यानी द्वापरयुग में यह नगरी हस्थिनापुर की शत्रु नगरी थी। क्योंकि, भीष्म ने विवाह मंडप से इस नगरी की तीन राजकुमारियों का हरण कर लिया था। (महाभारत आदिपर्व)
हालांकि कुरुक्षेत्र के युद्ध में काशीनरेश पांडवों के पक्ष में युद्धभूमि में लड़े थे।
10. मुक्त लोगों के चित्त में बसती है काशी
कूर्म पुराण के अनुसार भगवान् शिव माता पार्वती को वाराणसी की महिमा सुनाते हुए समझाते हैं कि मेरा गुह्यतम क्षेत्र वाराणसी पुरी है। यह समस्त तीर्थों, पुण्य स्थानों में उत्तम है। जो अविमुक्त पुरुष है, उसे यह पुरी दिखाई नहीं देती, मुक्त लोग ही इसे चित्त में देख सकते हैं। यह श्मशान अविमुक्त विख्यात है।
अविमुक्ता न पश्यन्ति: मुक्ता पश्यन्ति चेतसा।
श्मशाने मते द्विख्यातमविमुक्तमिति स्मृतम्।। (कूर्म पुराण 31.26-27)
श्मशाने मते द्विख्यातमविमुक्तमिति स्मृतम्।। (कूर्म पुराण 31.26-27)
उत्तर भारत का ये पुण्य तीर्थ असि तथा वरुणा नदियों के बीच का भू-भाग होने से इसे वाराणसी नाम से पुकारा गया है। मत्स्य पुराण के अनुसार यह पूर्व-पश्चिम की ओर दो योजन लंबी तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर आधा योजन विस्तृत है। काशी का वाराणसी नाम भी काफी पुराना है, महाभारत के शांतिपर्व में इस नाम का उल्लेख मिलता है। काशी, महाश्मशान, आनंदवन, शिवपुरी, विश्वनाथ क्षेत्र आदि इसके ही नाम हैं। अंत में बस इतना ही कि अगर भारत में धर्म समझना है तो काशी आइए क्योंकि पूरा जम्बूद्वीप इसे भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी मानता हैं।
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