शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

इस मंदिर से आज तक कोई खाली हाथ नही लौटा

महाराष्ट्र समेत पूरी दुनिया में गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी यह हिन्दुओं का एक पवित्र त्यौहार है। आज हर जगह लोग अपने आस्था के अनुसार भगवान गणेश की प्रतिमा को स्थापित करते हैं और उनकी पूजा अर्चना कर अपने मन की इच्छा को प्रकट करते हैं। आज कई बड़े पंडाल सजे हुए करोड़ो भक्त अपने बप्पा का दर्शन करने घोरों से निकल के उनकी कृपा पाने की कोशिश करते हैं। लेकिन भगवान गणेश के कुछ ऐसे भी प्राचीन मंदिर हैं जिनके बारें में सुनकर लोग आज भी हैरान होते हैं। महारष्ट्र में एक ऐसा मन्दिर हैं जिसे अष्टविनायक के नाम से जाना जाता है। धार्मिक रीती रिवाज के अनुसार अष्टविनायक मंदिर की अपनी विशेषता है इस मंदिर में भगवान गणेश के आठ स्वरूपों का दर्शन अवसर भक्तों को मिलता है। इस मंदिर में आने वाला भक्त कभी खाली हाथ नही लौटता है।

भगवान गणेश का एक स्वरूप है बल्लालेश्वर : मुंबई पुणे मार्ग पर एक गावं है जिसे पाली के नाम से जाना जाता है। मान्यता है की यही बल्लालेश्वर का निवास है। भगवान बल्लालेश्वर की यह मूर्ति बड़ी ही मनमोहक है जिसे देखने के बाद भक्त मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। यहां वैसे तो हर दिन भक्तो का तांता लगा रहता है लेकिन विशेष तौर पर बुधवार और चतुर्थी के दिन यहां हजारो भक्त अपनी मनोकामना के साथ भगवान गणेश के बल्लालेश्वर स्वरुप का दर्शन करने आते हैं।

प्रतिमा की विशेषता : बल्लालेश्वर यह एक प्राचीन मूर्ति है माना जाता है की यह पाषाण युग से है। इस मूर्ति को किसी ने नही बनाया था यह मूर्ति जमींन के अंदर से प्राप्त हुआ था। बल्लालेश्वर की यह मूर्ति 3 फिट ऊँची है और सूंड बाई ओऱ की तरफ है। भगवान की इस प्रतिमा में आँखों और नाभि में चमकदार हीरे जड़े हैं। भगवान गणेश की यह प्रतिमा ब्राम्हण की पोशाक रहते हैं।

बल्लालेश्वर मंदिर की मान्यता: ऐसी मान्यता है की एक बल्ला नाम के भक्त से भगवान गणेश इतने खुश हुए की वहीं एक मूर्ति में विराज मान हो गए और तब से उन्हें पाली के राजा बल्लालेश्वर के नाम से जाना जाने लगा। इस मंदिर में आज भी भक्त बड़ी आस्था के साथ यहां आते है और मंदिर के बाहर बने दो कुण्ड में नहने के बाद भगवान से अपनी मुरादे मांगते है। और निश्चित ही भगवान अपने भक्तो की सदैव सुनते हैं शायद इसीलिए भक्त अपने बप्पा को पाली का राजा भी कह कर बुलाते है।

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