रविवार, 18 सितंबर 2016

जानिए क्यों किया जाता है गंगा में अस्थियों को विसर्जित

हिंदू धर्म दर्शन की मान्यता के अनुसार दाह-संस्कार के बाद अस्थियों को पवित्र नदी में बहानें की मान्यता है। यहीं वजह है कि आज भी देश के विभिन्न कोनों से लोग अपने अपनें प्रियजनों की अस्थियों को पवित्र नदी गंगा में बहानें आते है।

गंगा नदी की बात करें तो यह नदी हमारे धार्मिक पुराणों में सबसे पवित्र मानी जाती है। यही वजह है कि आज भी लोग मां गंगा के प्रति अटुट आस्था रखते है। वर्तमान में सभी गगां मां की स्थिति से भलिभांति परिचित होगें। लेकिन फिर भी श्रध्दालुओं की आस्था देखते ही बनती है।

मान्यता है कि मृत्य के निकट पहुंते व्यक्ति के मुंह में 2 बूंद गंगाजल की पिलाना चाहिए। इसी के साथ अस्थिकलशश को गंगा में विसर्जित करनें भी हिंदू धर्म में बताया गया है। लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि गंगा में आए दिन अस्थि कलश विसर्जित किए जाते है, इतनी अधिक संख्या में किए जाने वाली अस्थियां आखिर जाती कहां है। तो आइए इसके पीछे का कारण हम आपको बताते है।

शास्त्रों के अनुसार गंगाजी को देव नदी कहा जाता है। गंगा स्वर्ग से धरती पर आई थी इसलिए गंगाजी को देव नदी कहा जाता है। धार्मिक ग्रंथो में वर्णन मिलता है कि गंगा श्री हरि विष्णु के चरणों से निकली है और भगवान शिव की जटाओं में आकर बसी है। भगवान विष्णु और शिव के गहरे संबध होने के कारण गंगा को पतित पाविनी कहा गया है।

हिंदू धर्म में मान्यता है कि गंगा में स्नान करनें से व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते है। इसी संबध में एक दिन देवी गंगा श्री हरि से मिलने बैंकुण्ठ धाम गई और उन्हें जाकर बोली, प्रभु मेरे जल से स्नान करने से सभी के पाप नष्ट हो जाते है लेकिन में इतनें पापों का बोझ कैसे उठाउंगी? मेंरे में जो पाप समाएंगे उन्हें कैसे समाप्त करुंगी? देवी गंगा की “इस बात पर श्री हरि नें उत्तर दिया, ! गंगा जब साधु संत वैष्णव आ कर आप में स्नान करेंगे तो आप के सभ पाप धुल जाएंगे।“

गंगा में अस्थियां विसर्जन करनें के बाद आखिर जाती कहां है? इस पर काफी वैज्ञानिको नें शोध किए है लेकिन इसका उत्तर वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है। असंख्य मात्रा में अस्थियों का विसर्जन करनें के बाद भी गंगा का जल पवित्र एवं निर्मल है। हिंदू मान्यता के अनुसार मृत्यु के बाद उस व्यक्ति की अस्थियों का विसर्जन गंगा में किया जाता है। ताकि उस वक्ति की आत्मा श्री हरि के चरणों में बैकुण्ठ को जाती है।

लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से माना जाए तो गंगा के जल में पारा की मात्रा बहुतायत में मिलती है। जिससे हड्डियों में कैल्सियम और फास्फोरस पानी में घुल जाता है। जो भी जलजन्तु होते है उनके लिए यह एक आहार के रुप में काम में लिया जाता है। हड्डयों में गंधक विद्दमान होती है, जो पारे के साथ मिलकर पारद का निर्माण करते है। ये दोनो तत्व मिलकर मर्करी सल्फाइड साल्ट का निर्माण करते है। हड्डियों में बचा हुआ शेष कैल्शियम पानी को स्वच्छ रखने का काम करता है।

तो यही वजह है कि असंख्य रुप में अस्थियों का विसर्जन करनें के बाद भी गंगा का जल पवित्र बना रहता है। और आज भी लोग बड़ी श्रध्दा से यहां आकर मां गंगा के प्रति अपनी श्रध्दा रखते है।

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