शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

पितृपक्ष में ऐसे करेंगे तर्पण तो पुरखों को मोक्ष संभव








कब से कब तक है पितृ पक्ष
ज्योतिषाचार्य डॉ. विमल जैन के अनुसार, आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि तक पितृ पक्ष कहलाता है, जो इस बार 17 सितम्बर से 30 सितम्बर तक है। इन तिथियों के दौरान श्राद्ध संबंधी सभी कर्म किये जाएंगे, लेकिन जिनकी मृत्यु पूर्णिमा तिथि के दिन हुई है, उनका भाद्रपद माह के पूर्णिमा तिथि के दिन ही श्राद्ध करने का नियम है।

पूर्णिमा तिथि का श्राद्ध प्रौष्ठपदी श्राद्ध के नाम से जाना जाता है और इस बार यह श्राद्ध 16 सितम्बर को किया जाएगा। मान्यता है कि काशी के पिशाच मोचन पर श्राद्ध करने से अकाल मृत्यु में मरने वाले पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति के साथ मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस धार्मिक स्थल का उद्भव गंगा के धरती पर आने से पूर्व हुआ है। पिशाच मोचन तीर्थ स्थल का वर्णन गरुण पुराण में भी वर्णित है।

कैसे करते हैं श्राद्ध
कर्मकांडी ब्राह्मणों के आचार्यत्व में पितरों को जौ के आटे की गोलियां, काला तिल, कुश और गंगाजल आदि से विधि-विधान पूर्वक पिण्डदान, श्राद्धकर्म व तर्पण किया जाता है। मान्यतानुसार परिवार के मुख्य सदस्य  क्षोरकर्म (सिर के बाल, दाढ़ी व मूंछ आदि मुंडवाना) मंत्रोच्चार की ध्वनि के साथ पितरों का श्राद्धकर्म करते है।

श्राद्धकर्म के पश्चात गौ, कौओं और श्वानों को आहार दिया जाता है। पिशाच मोचन में पिण्डदान की सदियों पुरानी परम्परा रही है। इसी के निमित्त आस्थावानों द्वारा हर वर्ष यहां कुण्ड पर पिण्डदान व श्राद्धकर्म कर गया में श्राद्धकर्म का संकल्प लिया जाता है।

श्राद्ध के कितने होते हैं प्रकार
श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जिसमें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि, सपिण्डन, पार्वण, गोष्ठ, शुद्धयर्थ, कमांग, दैविक, औपचारिक, सांवत्सरिक श्राद्ध तक चलने वाले पितृपक्ष में प्रतिदिन पितरों को पिण्डदान व तर्पण करने की धार्मिंक मान्यता निभायी जायेगी।

गया से पहले काशी में होता है श्राद्ध

अपने पितरों के मुक्ति की कामना से पिशाच मोचन कुण्ड पर श्राद्ध और तर्पण करने के लिए लोगों की भीड़ पितृ पक्ष के महीने में जुटती है और मान्यता है कि जिन पूर्वजों की अकाल मृत्य हुई है, वो प्रेत योनी में जाते हैं और उनकी आत्मा भटकती है। इनकी शांति और मोक्ष के लिये यहां तर्पण का कार्य किया जाता है। गया का भी काफी महत्व है, लेकिन जो भी श्राद्ध करने की इच्छा रखता है वो पहले काशी आता है और उसके पश्चात ही गया प्रस्थान करता है।

पितरों का पिण्डदान व श्राद्धकर्म से जहां पितृ ऋण से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। साथ ही पितरों से धन-धान्य व यश की प्राप्ति के आशीष का द्वार भी खुल जाता है। इसलिए यह पूरी श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए।


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