मंगलवार, 20 सितंबर 2016

सिर्फ़ मरे हुए लोगों का काल नहीं है पितृपक्ष

श्रावण मास से मार्गशीर्ष तक सम्पूर्ण विश्व में कोई न कोई त्योहार या पर्व मनाया जाता है। त्योहार से आशय किसी उत्सव से है और पर्व का अभिप्राय किसी विशिष्ट काल, पुण्य काल, खण्ड, अंश या अध्याय से। यानि पर्व जीवन का वो अध्याय, अंश, या खण्ड है, जिसमें हम अपने पूर्व में किये गये नकारात्मक कर्मों के फलों से निर्मित दुर्भाग्य पर नवीन सकारात्मक कर्मों का उपरिलेखन करके अपने शेष जीवन और अगले जन्मों को नई दिशा देने का प्रयास करते हैं।

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार यह एक ऐसी अदभुत बेला है, जिसमें अल्पप्रयास से ही वृहद और विशाल परिणाम प्राप्त होते हैं। आध्यात्मिक दृष्टि से यह आत्मा और आत्मिक उन्नति का वो पुण्यकाल है, जिसमें कम से कम प्रयास से भी अधिकाधिक फलों की प्राप्ति सम्भव है। आध्यात्म, इस काल को जीवात्मा के कल्याण यानि मोक्ष के लिये सर्वश्रेष्ठ मानता है। जीवन और मृत्यु से परे हो जाने की अवधारणा को मोक्ष कहते हैं।

सामान्य बोलचाल में ये श्राद्ध का पखवाड़ा कहा जाता है। यह पक्ष सिर्फ़ मरे हुये लोगों का काल है, यह धारणा सही नहीं है। श्राद्ध दरअसल अपने अस्तित्व से, अपने मूल से रूबरू होने और अपनी जड़ों से जुड़ने, उसे पहचानने और सम्मान देने की एक सामाजिक प्रक्रिया का हिस्सा थी, जिसने प्राणायाम, योग, व्रत, उपवास, यज्ञ और असहायों की सहायता जैसे अन्य कल्याणकारी सकारात्मक कर्मों और उपक्रमों की तरह कालांतर में आध्यात्मिक और धार्मिक बाना ओढ़ लिया।

श्रद्धया इदं श्राद्धम्‌। यानि अपने पूर्वजों की आत्मिक संतुष्टि व शांति और मृत्यु के बाद उनकी निर्बाध अनन्त यात्रा के लिये पूर्ण श्रद्धा से अर्पित कामना, प्रार्थना, कर्म और प्रयास को हम श्राद्ध कहते है। इस पक्ष को इसके अदभुत गुणों के कारण ही पितृ और पूर्वजों से सम्बद्ध गतिविधियों से जोड़ दिया गया।

इस पखवाड़े में स्थूल गतिविधियों को महत्व नहीं दिया गया क्योंकि आध्यात्मिक दृष्टिकोण स्थूल समृद्धि और भौतिक सफ़लता को क्षणभंगुर यानि शीघ्र ही मिट जाने वाला मानता हैं, और इतने क़ीमती कालखंड का इतना सस्ता उपयोग नहीं करना चाहता। पर ऐश्वर्य की कामना रखकर महालक्ष्मी को प्रसन्न करने वाली समृद्धि की साधना भी इस पक्ष के बिना पूर्ण नहीं होती। महालक्ष्मी आराधना में इस पक्ष के प्रथम सप्ताह का इस्तेमाल होता है। लक्ष्मी उपासना का काल भाद्रपद के शुक्ल की अष्टमी से आरम्भ होकर भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक होता है।

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