बुधवार, 21 सितंबर 2016

भूलकर भी न बनाएं उलटा स्वास्तिक, बिगड़ सकते हैं बने काम







स्‍वास्‍तिक है मंगलकारी
हमारी वैदिक सनातन संस्कृति का सर्वमंगलकारी प्रतीक चिह्न है 'स्‍वास्‍तिक'। इस चिह्न को हमारे सभी व्रत, पर्व, त्‍योहार, पूजा तथा प्रत्‍येक मांगलिक अवसर पर कुमकुम से अंकित किया जाता है। विद्वानों के अनुसार यह चिह्न अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है।

क्‍या है 'स्‍वास्‍तिक' का अर्थ
वैसे तो स्‍वास्‍तिक का सीधा सा अर्थ है 'शुभ-मंगल एवं कल्‍याण करने वाला' लेकिन, संस्कृत व्‍याकरण के अनुसार 'स्वास्तिक' शब्द 'सु' और 'अस' धातु से बना है। यहां 'सु' का अर्थ है शुभ, मंगल और कल्याणकारी वहीं 'अस' का अर्थ है अस्तित्व में रहना। कह सकते हैं कि यह पूर्णतः कल्याणकारी भावना को दर्शाता है। स्‍वास्‍तिक देवताओं के चहुंओर घूमने वाले आभामंडल का चिह्न है। इसी कारण  देवताओं की शक्ति का प्रतीक होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ एवं कल्याणकारी माना गया है।

तो कितना प्राचीन है 'स्‍वास्‍तिक'
देखा जाए तो स्वास्तिक चिह्न का प्रयोग विश्‍व के अनेक धर्मों में किया जाता है। जैन व बौद्ध सम्प्रदाय व अन्य धर्मों में प्रायः लाल, पीले एवं श्वेत रंग से अंकित स्वास्तिक का प्रयोग होता रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिह्न एवं अवशेष प्राप्त हुए हैं जिनसे यह प्रमाणित हो जाता है कि लगभग 2-3 हजार वर्ष पूर्व भी मानव सभ्‍यता अपने भवनों में इस मंगलकारी चिह्न का प्रयोग करती थी।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय एडोल्फ हिटलर ने उल्टे स्वास्तिक का चिह्न अपनी सेना के प्रतीक रूप में शामिल किया था। सभी सैनिकों की वर्दी एवं टोपी पर यह उल्टा स्वास्तिक चिह्न अंकित था। दरअसल उल्‍टा स्‍वास्‍तिक चिह्न अमंगलकारी माना जाता है। विद्वानों का मत है कि उल्टा स्वास्तिक ही उसकी बर्बादी का कारण बना। उसके शासन का नाश हुआ एवं भारी तबाही के साथ युद्ध में उसकी हार हुई |

अशुद्ध स्‍थानों पर ना बनाएं स्‍वास्‍तिक
स्वास्तिक का प्रयोग शुद्ध, पवित्र एवं सही ढंग से उचित स्थान पर करना चाहिए। शौचालय एवं गन्दे स्थानों पर इसका प्रयोग वर्जित है। ऐसा करने वाले की बुद्धि एवं विवेक समाप्त हो जाता है। दरिद्रता, तनाव एवं रोग एवं क्लेश में वृद्धि होती है।

यहां बनाएं स्‍वास्‍तिक का चिह्न
स्वास्तिक की आकृति श्रीगणेश की प्रतीक है और विष्णु जी एवं सूर्यदेव का आसन मानी जाती है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। प्रत्येक मंगल व शुभ कार्य में इसे शामिल किया जाता है। इसका प्रयोग रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय में किया जाता है। यह तनाव, रोग, क्लेश, निर्धनता एवं शत्रुता से मुक्ति दिलाता है।

क्‍यों बनाएं स्‍वास्‍तिक चिह्न
स्वास्तिक के प्रयोग से धनवृद्धि, गृहशान्ति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति मिलती है। जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है। ज्योतिष में इस मांगलिक चिह्न को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सफलता व उन्नति का प्रतीक माना गया है।

मुख्य द्वार पर 6.5 इंच का स्वास्तिक बनाकर लगाने से अनेक प्रकार के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। हल्दी से अंकित स्वास्तिक शत्रु का शमन करता है। स्वास्तिक 27नक्षत्रों को सन्तुलित करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह चिह्न नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इसका भरपूर प्रयोग अमंगल व बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।

ब्रह्माण्‍ड का प्रतीक
स्‍वास्‍तिक का मंगलकारी चिह्न दरअसल ब्रह्माण्‍ड का प्रतीक माना गया है। इसके मघ्य भाग को विष्णु की नाभि, चारों रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित करने की भावना है।

देवताओं के चारों ओर घूमने वाले आभामंडल का चिह्न ही स्वास्तिक के आकार का होने के कारण इसे शास्त्रों में शुभ माना जाता है। तर्क से भी इसे सिद्ध किया जा सकता है।

अन्‍य संस्‍कृतियों में स्‍वास्‍तिक
स्‍वास्‍तिक को नेपाल में हेरंब के नाम से पूजा जाता है। वहीं मेसोपोटेमिया में अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने हेतु स्वस्तिक चिह्न का प्रयोग किया जाता है। हिटलर ने भी इस स्वस्तिक चिह्न को अपनाया था।

बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग़ चिन्हों को दिखता है दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।

जैन धर्म में भी स्‍वास्‍तिक के चिह्न का अत्‍यधिक महत्‍व है। जैन धर्म में यह सातवें जीना का प्रतिक है। श्‍वेताम्‍बर जैन सांस्कृतिक में स्वस्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक माना जाता है।


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