जिंदगी में हमेशा हमें कोई न कोई, किसी न किसी प्रकार से सीख देता है बस सीखने की देरी होती है जैसे की गणेश विसर्जन में ईश्वर की सुंदर मूर्तियों को पूजन के बाद विसर्जित करने का विधान हैं। ऐसा क्यों हैं? यह बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी। जोकि पुराणों में वर्णित है कि जल को ब्रह्म स्वरूप माना गया है।
सृष्टि के शुरुआत जल में हुई है, और भविष्य में संभवतः सृष्टि का अंत जल में ही होगा। जल बुद्घि और ज्ञान का प्रतीक है। जल में ही यानी क्षीरसागर में श्री हरि का निवास है।
माना जाता है कि जब जल में देव प्रतिमाओं को विसर्जित किया जाता है, तो देवी देवताओं का अंश मूर्ति से निकलकर वापस देवलोक में चला जाता है। यानी की परम ब्रह्म में परमात्मा लीन हो जाते हैं। यही कारण है कि देवी और देवताओं की मूर्तियों को निर्मल जल में विसर्जित किया जाता है।
जल में गणेश मूर्ति विसर्जित करने के बारे में एक अन्य कथा का भी उल्लेख पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब महाभारत के रचयिता वेद व्यास जी ने महाभारत की कथा गणेश जी को गणेश चतुर्थी से लेकर अनन्त चतुर्थी तक लगातार दस दिन तक सुनाई थी।
यह कथा जब वेद व्यास जी सुना रहे थे, तब लगातार दस दिन से कथा यानी की ज्ञान की बातें सुनते-सुनते गणेश जी के शरीर का तापमान बहुत ही अधिक बढा गया था। उन्हें ज्वर हो गया था। तो तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकटतम कुंड में ले जाकर डुबकी लगवाई, जिससे उनके शरीर का तापमान कम हुआ।
गणेश विसर्जन से मिलती है ये सीख:
1. सभी का आदर और सम्मान करें।
2. अस्थायी और नश्वर है जीवन।
3. ईश्वर निराकार हैं।
4. जीवन है तो जन्म-मृत्यु तो होगी ही, इसीलिए मोह-माया से बनाये रखें।
5. विसर्जन हमें तटस्थता के पाठ को सिखाता है।
गुरुवार, 15 सितंबर 2016
गणेश विसर्जन से मिलती है ये सीख
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ज्योतिष
पढ़ाई का विषय हमेशा साइंस रहा। बी एससी इलेट्रॉनिक्स से करने के बाद अचानक पत्रकारिता की तरफ रूझान बढ़ा। नतीजतन आज मेरा व्यवसाय और शौक
दोनों यही बन गए।
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