शुक्रवार, 16 सितंबर 2016

कौन से ग्रह योग मनुष्य को बनाते हैं धनवान

ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के आधार पर मनुष्य के जीवन, विद्या और आर्थिक स्तर का भी अध्ययन किया जाता है। ग्रहों की स्थिति से यह आकलन किया जा सकता है कि जातक का जीवन कैसा रहेगा। उसे धन की प्राप्ति होगी या संघर्ष में ही जीवन बीतेगा? कुंडली के 12 भावों में नौ ग्रहों की स्थिति किसी मनुष्य का आर्थिक भविष्य तय करती है। ग्रहों की युति, स्थिति जीवन में सुख-दुख लाती है।

अगर कुंडली में सूर्य और बुध दूसरे भाव में स्थित हों तो ऐसा व्यक्ति काफी प्रयासों के बाद भी पैसे की बचत करने में सक्षम नहीं होता। अगर कुंडली के दूसरे भाव में चंद्रमा स्थित हो, उस पर बुध की दुष्टि पड़ती हो तो उसके धन का नाश होने की आशंका होती है। अगर उसे पुरखों से धन मिलता है तो वह भी उसके पास नहीं रहता।

कुंडली में चंद्रमा अकेला हो, उसके द्वादश में कोई भी ग्रह मौजूद न हो तो यह भी धन के संकट का योग होता है। ऐसा जातक धन के अभाव में कष्ट पाता है। दूसरे भाव में चंद्रमा स्थित हो तो ऐसे मनुष्य को प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त होता है। उसे धनार्जन के लिए अधिक कष्ट नहीं उठाने पड़ते। वह सुख-सुविधओं के साधन आसानी से जुटा लेता है।

दूसरे भाव में शुभ ग्रह हों तो ऐसा जातक धनवान होता है। उसे परिश्रम का लाभ मिलता है और आर्थिक बाधाएं अवश्य दूर हो जाती हैं। कुंडली का दूसरा भाव धन का परिचायक होता है। इसमें स्थिति ग्रहों की स्थिति जातक की आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी देती है।
अगर दूसरे भाव में बुध पर चंद्रमा की दृष्टि पड़े तो यह जातक के लिए कष्टदायक होती है। ऐसे मनुष्य के जीवन में अक्सर धन की कमी होती है।

चंद्र मंगल योग- इस योग को लक्ष्मी योग के नाम से भी जाना जाता हैं। यह योग चंद्र एवम मंगल की युति या केंद्र स्थिति के द्वारा बनता हैं। यह काफी बलवान योग हैं और हर परिस्थिति में फलदायी होता हैं भले ही लग्न व भाव स्थिति के कारण फल के अंशो में न्यूनता हों। यदि चंद्र-मंगल योग पहले भाव में, दूसरे, पांचवे, नववें व एकादश भाव में बने तो व्यक्ति अत्यधिक धनवान होता हैं।

महालक्ष्मी योग – यह योग अपने नाम के अनुसार ही फल देने वाला होता हैं। इस योग के बनने के कारणों से ही इस योग के सफल होने का पता चल जाता हैं। जन्म कुंडली में दूसरे भाव को धन स्थान कहते हैं। तथा ग्याहरवें भाव को लाभ भाव, जब इन दोनों भावों के स्वामियों का आपस में किसी भी प्रकार का संबंध बनता हैं तो इस योग का निर्माण होता हैं। यह योग अन्य सभी योगों में सबसे उत्तम फल देने वाला होता हैं।

कोटीपति योग- इस योग में जन्मा जातक करोडपति होता हैं। शनि केन्द्रगत हो तथा गुरु व शुक्र एक दूसरे से केंद्र या त्रिकोण भाव में बली हो, तथा लग्नेश बली हो तो यह योग बनता हैं। ऐसे जातक के पास स्थिर लक्ष्मी रहती है।

महाभाग्य योग – यह योग स्त्री व पुरुषों की जन्म कुंडली में अलग- अलग रूप में बनता हैं। इस योग को बनने के लिये चार स्थितियां महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। पुरुष का जन्म दिन में हो तथा स्त्री का जन्म रात्रि का हो। पुरुष का जन्म विषम लग्न में हो तथा स्त्री का जन्म सम राशि में हो। पुरुषों की पत्रिका में सूर्य विषम राशि में हो। स्त्री की पत्रिका में सम राशि में हो। पुरुषों का चंद्र विषम राशि में हो। जबकी स्त्री का जन्म सम राशि में हो। इन स्थितियो में जन्मा जातक निसंदेह राजा की तरह जीवन जीता है।

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