शनिदेव दक्षप्रजापति की पुत्री संज्ञादेवी और सूर्यदेव के पुत्र है। यह नवग्रहों में सबसे अधिक भयभीत करने वाला ग्रह है। इसका प्रभाव एक राशि पर ढाई वर्ष साढे साती के रूप मे लंबी अवधि तक भोगना पडता है। शनिदेव की गति अन्य सभी ग्रहों से मंद होने का कारण इनका लंगडाकर चलना है। वे लंगडाकर क्यों चलते है, इसके संबंध में सूर्यतंत्र में एक कथा है-एक बार सूर्यदेव का तेज सहन न कर पाने की वजह से संज्ञादेवी ने अपने शरीर से अपने जैसी ही एक प्रतिमूर्ति तैयार की और उसका नाग सवर्णा रखा इसलिए उनका दिया शाप व्यर्थ तो नहीं होगा, परन्तु यह इतना कठोर नहीं होगा कि टांग पूरी तरह से अलग हो गए। हां तुम आजीवन एक पांव से लंगडाकर चलते रहोगे। तभी से शनिदेव लंगडे है। शनिदेव पर तेल क्यो चढाया जात है, इस संबंध मे आनंदरामायण में एक कथा का उल्लेख मिलता है।
जब भगवान राम की सेना ने सागरसेतु बांध लिया, ताकि राक्षस इसे हानि न पहुंचा, उसके पवनपुत्र हनुमान को उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी सौंपी गई। तब हनुमानजी शाम के सामय अपने इष्टदेव राम के ध्यान में मग्न थे, तभी सूर्यपुत्र शनि ने अपना काला कुरूप चेहरा बनाकर क्रोधपूर्वक कहा-“हे वानर! मैं देवताओं में शक्तिशाली शनि हूं। सुना है, तुम बहुत बलशाली हो। आंखें खोलो और मुझसे युद्ध करो, मैं तुमसे युद्ध करना चाहता हूं।
उसे आज्ञा दी कि तुम मेरी अनुपस्थिति में मेरी सारी संतानों की देखरेख करते हुए सूर्यदेव की सेवा करो और पत्नीसुख भोगो। आदेश देकर वह अपने पिता के घर चली गई। सवर्णा ने भी अपने आपको इस तरह ढाला कि सूर्यदेव भी यह रहस्य न जान सके। इस बीच सूर्यदेव से सवर्णा को पांच पुत्र और दो पुत्रियां हुई। सवर्णा अपने बच्चों पर अधिक और संज्ञा की संतानों पर कम ध्यान देने लगी। एक दिन संज्ञा के पुत्र शनि को तेज भूख लगी, तो उसने सवर्णा से भोजन मांगा। तब सवर्णा ने कहा कि अभी ठहरो, पहले मैं भगवान को भोग लगा लू और तुम्हारे छोटे भाई-बहनों को खिला दूं, फिर तुम्हें भोजन दूंगी। यह सुनकर शनि को क्रोध आ गए और उन्होंने माता को मारने के लिए अपना पैर उठाया, तो सवर्णा ने शनि को शाप दिया कि तेरा पांव अभी टूट जाए। माता का शाप सुनकर शनिदेव डरकर अपने पिता के पास गए और सारा किस्सा सुनाया। सूर्यदेव तुरंत समझ गए कि कोई भी माता अपने पुत्र को इस तरह का शाप नहीं दे सकती।
इसलिए उनके साथ उनकी पत्नी नहीं, कोई अन्य है। सूर्यदेव ने क्रोध में आकर पूछा कि “बताओ तुम कौन हो!” सूर्य का तेज देखकर सवर्णा घबरा गई और सारी सच्चाई उन्हें बता दी। तब सूर्यदेव ने शनि को समझाया कि सवर्णा तुम्हारी माता नहीं है, लेकिन मां समान है। इस पर हनुमान ने विनम्रतापूर्वक कहा-“इससमय मैं अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूं। आप मेरी पूजा में विघ्न मत डालिए। आप मेरे आदरणीय हैं, कृपा करके यहां से चले जाइए।” जब शनि लडने पर ही उतर आए, तो हनुमान ने शनि को अपनी पूंछ मे लपेटना शुरू कर दिया। फिर उसे कसना प्रारंभ कर दिया। जोर लगाने पर शनि उस बंधन से मुक्त न होकर पीडा से व्याकुल होने लगे। हनुमानजी ने फिर सेतु की परिक्रमा शुरू कर शनि के घमंड को तोडने के लिए पत्थरों पर पूंछ को झटका दे-दे कर पटकना शुरू कर दिया। इससे शनि का शरीर लहूलुहान हो गया, जिससे उनकी पीडा बढती गई।
तब शनिदेव ने हनुमानजी से प्रार्थना की मुझे बंधनमुक्त कर दीजिए। मैं अपने अपराध की सजा पा चुका हूं। फिर मुझसे ऎसी गलती नहीं होगी। इस पर हनुमानजी बोले-“मैं तुम्हें तभी छोडूंगा, जब तुम मुझे वचन दोगे कि श्रीराम के भक्तौं को कभी परेशान नहीं करोगे। यदि तुमने ऎसा किया, तो मैं तुम्हें कठोर दंड दूंगा।” शनि ने गिडगिडाकर कहा-“मैं वचन देता हूं कि कभी भूलकर भी आपके और श्रीराम के भक्तों की राशि पर नहीं आउंगा। आप मुझे छोड दें।” तब हनुमान ने जो तेल दिया, उसे घाव पर लगाते ही शनिदेव की पीडा मिट गई। उसी दिन से शनिदेव को तेल चढता है, जिससे उनकी पीडा शांत होती है और वे प्रसन्न हो जाते है।
शनिवार, 27 अगस्त 2016
शनि देव पर तेल ही क्यों चढ़ाया जाता है
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ज्योतिष
पढ़ाई का विषय हमेशा साइंस रहा। बी एससी इलेट्रॉनिक्स से करने के बाद अचानक पत्रकारिता की तरफ रूझान बढ़ा। नतीजतन आज मेरा व्यवसाय और शौक
दोनों यही बन गए।
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