इंडोनेशिया के एक दूरदराज कोने में रहने वाले एक समुदाय के लिए प्राण निकलने के बाद भी लोगों को अपनी दुनिया में सहेज कर रखा जाता है. कभी हफ्ते तो कभी सालों तक मुर्दों के साथ ही रहते हैं टोराजन.
इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर रहने वाले टोराजन लोगों की मौत को लेकर बहुत अलग मान्यताएं हैं. जब तक उनके समुदाय के किसी मरने वाले के नाम पर एक पानी के भैंसे की बलि नहीं दी जाती, तब तक वे उस व्यक्ति को पूरी तरह मृत नहीं मानते. क्योंकि भैंसे को वे मृतक को इस दुनिया से ले जाने वाली सवारी मानते हैं. तब तक मृतक के शव को परिवार अपने घर में वैसे ही रखता है जैसे कि वो जिंदा हो. इसी समुदाय के कुछ लोग तो मृतकों का दूसरा अंतिम संस्कार भी करते हैं. इसके लिए वे शव को खास तरीकों से सालों साल संभालते हैं. कुछ साल बाद उसे निकाल कर सफाई की जाती है, नए कपड़े पहनाए जाते हैं और इस तरह वे अपने मृत परिजनों के प्रति सम्मान दिखाते हैं.
इस परंपरा में भी परिवार वाले जितने अमीर हों वे उतने लंबे समय तक शवों को संभाल कर रखवा पाते हैं. गरीब परिवार कुछ दिन तो वहीं अमीर लोग कई साल तक. संपन्न परिवारों के अंतिम संस्कार समारोह भी हफ्तों तक चलते हैं. यह ठीक ठीक नहीं पता कि इस परंपरा की शुरुआत कब से हुई. टोराजन लोगों के लकड़े के ताबूतों की कार्बन डेटिंग प्रक्रिया से जांच करने पर पता चला है कि यह परंपरा नौंवी सदी जितनी पुरानी लगती है.
रविवार, 7 अगस्त 2016
अपने मुर्दों को भी नहीं छोड़ते ये लोग
Labels:
जरा हटके
पढ़ाई का विषय हमेशा साइंस रहा। बी एससी इलेट्रॉनिक्स से करने के बाद अचानक पत्रकारिता की तरफ रूझान बढ़ा। नतीजतन आज मेरा व्यवसाय और शौक
दोनों यही बन गए।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें