नई दिल्ली: नोटबंदी के बाद पीएम नरेंद्र मोदी को पूरे देश में विरोध का सामना करना पड़ रहा है. इन विरोधों के बीच मोदी सरकार अल्पसंख्यकों के लिए क्रांतिकारी कदम उठाने जा रही है. यह कदम इस्लामिक बैंकों को शुरुआत करने का है. केंद्र सरकार इस्लामिक बैंकिंग के जरिए अल्पसंख्यकों को भी बैंकिंग सुविधा देने की तैयारी कर रही है.
लेकिन क्या देश के मुसलमानों के लिए बैंक लाने का यह फैसला वाकई में अर्थक्रांति ला सकता है? आखिर मोदी सरकार क्यों लाना चाहती है देश में इस्लामिक बैंकिंग? आइए जानते हैं...
इस्लामिक बैंक के लिए सऊदी अरब के साथ समझौता
- कुछ दिनों पहले पीएम मोदी ने सऊदी अरब सरकार से देश भर में इस्लामिक बैंकों के ब्रांच खोलने के लिए समझौता किया था. जिसके तहत आईडीबी की पहली शाखा गुजरात में खुलेगी. यह बैंक पीएम मोदी के करीबी जफर सरेशवाला के नेतृत्व में खुलेगा.
- आपको बता दें कि पीएम मोदी ने अप्रैल में अपने यूएई दौरे के दौरान, भारत की एक्सिम बैंक ने इस्लामिक डेवेलपमेंट बैंक (आईडीबी) के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे.
- इस्लामिक बैंक खुलने से ऐसा माना जा रहा है कि भारत के अल्पसंख्यक समुदाय में आर्थिक स्तर पर बहुत बड़ा बदलाव आएगा.
- इस्लामिक बैंक शरीयत के कानूनों के अनुसार ही गठित किया जाता है. यह बैंक अपने कस्टमर्स के जमा पैसे पर न तो ब्याज देता है और न ही कस्टमर्स को दिए गए किसी लोन पर ब्याज लेता है.
इस्लामिक बैंक से विकास के एजेंडे को बढ़ावा
भारत में इस्लामिक बैंक को लाने के पीछे केंद्र सरकार अपने विकास को एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहता है. हालांकि सरकार के इस कदम की हिंदू संगठन विरोध भी कर रहे हैं. इसमें विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों का आरोप है कि इससे टैरर फंडिंग में इजाफा होगा.
पूरी दुनिया में 56 इस्लामिक बैंक
पूरी दुनिया में करीब 56 देशों में इस्लामिक बैंक हैं. इन बैंकों का उद्देश्य उसके सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था और सामाजिक विकास के लिए काम करना है. और IDB तो मुस्लिम समुदाय के विकास के लिए भी काम करता है, ऐसे में भारत जैसे देश में जहां, मुस्लिम समाज का बहुत बड़ा तबका भयावह गरीबी, अशिक्षा में डूबा हुआ है, उनके लिए इस्लामिक बैंक वरदान साबित हो सकते हैं.
भारत में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति सही नहीं
भारत में मुसलमानों की आर्थिक स्थिति बिल्कुल सही नहीं है. इसके अलावा इस्लामिक नियम कायदे भी गरीब मुसलमान परिवार इस्लामिक कानून के कारण बैंकिंग व्यवस्था से नहीं जुड़ पाते है. जबकि खाड़ी देशों सहित अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में भी मुसलमानों को बैंकिग से जोड़ने के लिए कई इस्लामिक बैंक खोले गए हैं.
पूरे देश में 90 फीसदी से ज्यादा इलाकों में बैंकिंग सिस्टम नहीं
लेकिन नोटबंदी से देश का बैंकिंग सिस्टम कैसा है असली चेहरा सामने आया है. पूरे देश में 90 फीसदी से ज्यादा इलाकों में बैंक नहीं है. जबकि अब भी लोगों ने अपने खाते नहीं खुलवाएं हैं. मोदी सरकार पूरे देश में डिजिटल बैंकिंग लाने का सपना देख रही है लेकिन आधे से ज्यादा हिस्सों में बैंकिंग सिस्टम का नहीं होना एक बहुत बड़ा झटका है.
अगर आर्थिक विकास और देश में अल्पसंख्यक समुदाय के पिछड़ेपन को मानक माना जाए तो ऐसे में मोदी सरकार का यह फैसला कई मायनों में ऐतिहासिक साबित हो सकता है.
गौरतलब है कि इस्लामिक बैंक को लेकर देश में बहस भी शुरू हो गई है. आपको बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने बीते हफ्ते ही में देश में शरिया बैंक खोलने का प्रस्ताव रखा है. इन बैंको में मुसलानों के लिए अलग खिड़की की व्यवस्था होगी.
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