नई दिल्ली। सरकार की तरफ से देश के ग्रामीण इलाकों तक बिजली पहुंचाने के संकल्प को पंख लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार(30 दिसंबर) को एक अहम फैसला दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि बिजली की तारों और टॉवरों को लगाने के लिए जमीन के मालिकों की पूर्व सहमति जरूरी नहीं है।
जस्टिस ए के सिकरी व आर भानुमति की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि यह बात सबको पता है कि हमारे देश में बिजली की भारी कमी है। यहां अनेकों ऐसे घर हैं जहां एक बल्ब जलाना भी सपने जैसा है। भारतीय टेलीग्राफ एक्ट के मुताबिक, बिना किसी बाधा के बिजली के तारों का ट्रांसमिशन जनता के व्यापक हित में है।
छत्तीसगढ़ की एक सीमेंट निर्माता कंपनी और पॉवर ग्रिड कॉर्पोरेशन ने इस मामले को लेकर याचिका दायर की थी। सीमेंट निर्माता कंपनी ने बिना सहमति के अपने चूना पत्थर एरिया में टॉवर लगाने को चुनौती दिया था।
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
‘बिजली की तारों को लगाने के लिए जमीन मालिकों की पूर्व सहमित अनिवार्य नहीं’
पढ़ाई का विषय हमेशा साइंस रहा। बी एससी इलेट्रॉनिक्स से करने के बाद अचानक पत्रकारिता की तरफ रूझान बढ़ा। नतीजतन आज मेरा व्यवसाय और शौक
दोनों यही बन गए।
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