बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

पूजा में कलश रखने का कारण और उसका महत्व

कलश में क का अर्थ है जल और लश का तात्पर्य सुशोभित करने से है यानी वह पात्र जो जल से सुशोभित होता है। हिंदू धर्म में कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। इसलिए गृहप्रवेश या किसी भी तरह का पूजन होने पर कलश स्थापित किया जाता है। कलश एक विशेष आकार का बर्तन होता है, जो चौड़ा होने के साथ ही कुछ गोलाई लिए होता है। मान्यताओं के अनुसार कलश के ऊपरी भाग में विष्णु , मध्य में शिव और तल यानी मूल में ब्रह्मा का निवास होता है। इसलिए पूजन से पहले कलश को देवी-देवता की शक्ति, तीर्थस्थान आदि का प्रतीक मानकर कलश रखा जाता है।


कलश में डाली जाती हैं ये चीजें


शास्त्रों में बिना जल के कलश को स्थापित करना अशुभ माना गया है। इसी कारण कलश में पानी, पान के पत्ते, आम के पत्ते, केसर, अक्षत, कुमकुम, दुर्वा-कुश, सुपारी, पुष्प, सूत, नारियल, अनाज आदि का उपयोग कर पूजा के लिए रखा जाता है।


कलश है इनका प्रतीक


कलश का पवित्र जल इस बात का प्रतीक है कि हमारा मन भी जल की तरह हमेशा ही स्वच्छ, निर्मल और शीतल बना रहें। हमारा मन श्रद्धा, तरलता, संवेदना और सरलता से भरा रहे। यह क्रोध, लोभ, मोह-माया और घृणा आदि से कौसों दूर रहे। कलश पर लगाया जाने वाला स्वस्तिक चिह्न हमारे जीवन की चार अवस्थाओं बाल्य, युवा, प्रौढ़ और वृद्धावस्था का प्रतीक है। कलश के ऊपर नारियल रखा जाता है जो कि श्री गणेश का प्रतीक है। सुपारी, पुष्प, दुर्वा आदि चीजें जीवन शक्ति को दर्शाती हैं।

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