सोमवार, 3 अक्तूबर 2016

मां कुष्मांडा के पूजन से पूरी होती है मनचाही मुराद

नवरात्रि के 9 दिन शक्ति की आराधना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं मान्यता है कि इन दिनों में आराधना करने और मनोवांछित कामना करने से वह पूरी होती है। नवरात्रि के 4 थे दिन मां कुष्मांडा का पूजन किया जाता है। दरअसल मां कुष्मांडा का नाम इसलिए रखा गया क्योंकि माता को कुम्हड़े की बलि दी जाती थी। दरअसल अब तो बलिप्रथा प्रचलन में नहीं है मगर कहा जाता है कि पहले बलिप्रथा होती थी। देवी मां का नाम इसी नाम पर कुष्मांडा प़ड़ गया।

माता सिंह पर आसीन होती हैं। माता की शक्ति दीव्य है। माता के हाथ में चक्र, गदा, माला, कमल पुष्प, तीर, धनुष कमंडल आदि सुशोभित हैं। इस तरह से माता शौर्य और तप का परिचय देती हैं। एक अन्य मान्यता है कि माता अपनी हंसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली हुई थीं। इसी कारण उनका नाम कुष्मांडा रखा गया।

माता की आराधना करने के लिए साधक अनाहत चक्र में ध्यान लगाते हैं। माता सूर्य की तरह तेजस्वी हैं। माता अपने श्रद्धालुओं को अभय का वरदान देकर शौर्य बढ़ाती हैं। श्रद्धालुओं में प्रसन्नता का यश का संचार होता है। उनका बल बढ़ता है। उन्हें आरोग्यता मिलती है और इनकी आयु भी बढ़ती है। माता श्रद्धालुओं द्वारा थोड़ी सी भक्ति में भी प्रसन्न हो जाती हैं।

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