रविवार, 2 अक्टूबर 2016

चंद्रघंटा माता की आराधना से मिलता है अभयदान

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की नवरात्रि का तीसरा दिन देवी की शक्ति चंद्रघंटा की आराधना का पर्व है। दरअसल माता अपने इस स्वरूप में अत्यंत शक्तिशाली रूम में हैं। माता का नाम चंद्रघंटा इसलिए रखा गया है क्योंकि माता का मस्तक अर्द्ध चंद्राकार आकृति में बेहद सुंदर लगता है। जब साधक माता का ध्यान करता है तो उसे ध्यान में घंटे जैसा नाद सुनाई देता है। या इसका अनुभव होता है। माता सिंह पर विराजमान हैं जो कि अष्टभुजाधारी हैं।

माता के एक हाथ में त्रिशूल, एक हाथ में गदा, एक हाथ में तलवार है और एक हाथ में कमंडल है तो एक अन्य हाथ में ज्ञान मुद्रा बनाए हुए हैं माता के एक हाथ में अंकुश और माला है। तो दूसरी ओर एक हाथ में शंख, पद्म, एक हाथ में तीर है माता एक हाथ से आशीर्वाद मुद्रा में आशीर्वाद दे रही हैं। माता की आराधना से साधक में वीरता और निर्भयता का गुण विकसित होता है। साधक सौम्य और विनर्म होता है। इस दिन साधक मणिपुर चक्र में ध्यान लगाते हैं।

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