नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संसदीय समिति के सामने नोटबंदी के फैसले के बारे में सफाई देनी पड़ सकीत है. समिति के मुखिया कांग्रेस नेता वीके थॉमस ने समाचार एजेंसी पीटीआई को यह जानकारी दी है. लोक लेखा समिति ने आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल को भी आदेश दिया है कि वह इस महीने की 20 तारीख को समझाएं कि विमुद्रीकरण का फैसला किस तरह लिया गया और उसका भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ता दिख रहा है.
आठ नवंबर को नोटबंदी के लिए गए फैसले से संबंधित सवालों की लिस्ट भी पटेल के पास भेजी गई हैं. इस निर्णय की वजह से देशभर में मुद्रा की कमी हो गई थी जो कि कुछ दिन पहले ही थोड़ी ठीक हुई है. हालांकि अभी भी नोटों की आपूर्ति अपेक्षाकृत तरीके से बेहतर नहीं हुई है और विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे विकास दर की गति धीमी पड़ सकती है.
थॉमस ने कहा कि ‘इस मामले में समिति जिसको चाहे बुला सकती है. लेकिन यह सब 20 जनवरी की बैठक से जो कुछ सामने आएगा उस पर निर्भर करता है. अगर सभी सदस्य राज़ी होते हैं तो हम पीएम को भी नोटबंदी के मुद्दे पर बुला सकते हैं.’ थॉमस ने यह भी कहा कि जब वह पीएम से इस फैसले के बाद मिले थे तो उन्होंने कहा था कि ’50 दिनों के बाद स्थिति सामान्य हो जाएगी’ लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है.
आरबीआई गवर्नर पटेल को भी नोटों की कमी और सीमित मात्रा में रकम निकालने के आदेश को लेकर विपक्ष द्वारा घेरा जा रहा है. लोक लेखा समिति ने गवर्नर पटेल से पूछा है कि कितने नोट लौटा दिए गए हैं, कितना काला धन बैंकों तक पुहंचा है और कितने नए नोट रिलीज़ किए गए हैं. हालिया रिलीज़ हुई रिपोर्ट में उन दावों को खारिज किया गया जिसमें कहा गया था कि नोटबंदी से काला धन सामने आएगा. इस रिपोर्ट के मुताबिक 15.44 लाख करोड़ रुपये जिन्हें मार्केट से एक झटके में खींच लिया गया था, वह पूरी रकम बैंकों में लौट आई है. आरबीआई ने बयान में कहा था कि 10 दिसंबर तक 12.44 लाख करोड़ यानि बंद किए गए नोटों का 80 प्रतिशत हिस्सा बैंकों में जमा करवा दिया गया है.
थॉमस ने कहा कि आरबीआई गवर्नर से यह भी पूछा गया है कि देश कैशलेस लेनदेन के लिए किस हद तक तैयार है. थॉमस कहते हैं ‘जिस देश में कॉल ड्रॉप की समस्या आम बात है और टेलिकॉम सुविधाएं अभी भी ठीक नहीं है, वहां पीएम ई-लेन देन के बारे में कैसे सोच सकते हैं. क्या हमारे पास उतने संसाधन हैं?’ उन्होंने कहा कि आरबीआई गवर्नर को भेजे गए सवालों में यह भी पूछा गया है कि नोटबंदी के फैसले में कौन कौन शामिल था और क्या जनता को अपने ही पैसे निकालने से रोका जाना कानूनन सही है.
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