शनिवार, 14 जनवरी 2017

‘साइकिल’ को लेकर चुनाव आयोग में अखिलेश गुट की सुनवाई पूरी

सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि चुनाव आयोग में अखिलेश गुट की तरफ से साइकिल सिम्बल को लेकर दी गई दलील पूरी हो गई है. अब 3 बजे मुलायम गुट की सुनवाई होगी.
इससे पहले साइकिल सिंबल पर अपना दावा ठोंकने वाले मुलायम सिंह यादव गुरुवार को चुनाव आयोग पहुंचे. मुलायम के साथ शिवपाल यादव और चार बड़े वकील भी मौजूद हैं. उधर अखिलेश की तरफ से रामगोपाल यादव भी चुनाव आयोग पहुंच चुके हैं. जाने माने वकील कपिल सिब्बल अखिलेश गुट का पक्ष रख रहे हैं.



  • चुनाव आयोग में मुलायम ने रखा पक्ष, कहा रामगोपाल पार्टी से हैं बर्खास्त
  • अखिलेश गुट के नेता भी पहुंचे चुनाव आयोग, रामगोपाल यादव, नरेश अग्रवाल, किरनमय नंदा, अभिषेक मिश्रा, सुरेंद्र यादव, अक्षय यादव मौजूद
  • मुलायम सिंह चुनाव आयोग पहुंचे, शिवपाल यादव आशू मलिक, ओम प्रकाश सिंह, संजय सेठ मौजूद
  • चुनाव आयोग जाने से पहले मुलायम सिंह ने कार्यकर्ताओं से कहा-भरोसा रखें, पार्टी नहीं टूटने देंगे
चुनाव आयोग का निर्णय जानने के लिए मुलायम सिंह अपने भाई शिवपाल सिंह के साथ बुधवार से ही दिल्ली में हैं. अखिलेश खेमे की ओर से राम गोपाल आयोग में पेश होते रहे हैं.
फैसला सुनाने से पहले अंतिम सुनवाई के दौरान दोनों धड़ों के दावों पर चुनाव आयोग कानूनी और तकनीकी विशेषज्ञों की राय लेगा. इसके बावजूद भी अगर स्थिति नहीं सुलझी तो आयोग समाजवादी पार्टी के नाम और निशान को फ्रीज कर दोनों दलों को नए नाम और निशान का विकल्प देगा.
किसके हिस्से, कौन सा सिंबल?
मुलायम खेमे ने जहां राष्ट्रीय लोकदल और इसके चुनाव निशान (हल जोतता किसान) का विकल्प आजमाने की तैयारी की है. अखिलेश खेमे की कोशिश है कि यदि उनका साइकिल से मिलता जुलता नाम मोटरसाइकल भी ना मिल पाने की स्थिति में वे बरगद के निशान पर चुनाव मैदान में उतर सकते हैं.
दरअसल, सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने राम गोपाल यादव पर भाजपा से मिलकर सपा को तोड़ने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि अपने पुत्र और बहू को सीबीआई से बचाने के लिए राम गोपाल यादव भाजपा से मिलकर सपा को तोड़ रहे हैं.
चुनाव चिह्न पर दावे के अपने अपने तर्क
मुलायम गुट का दावा है कि पार्टी की स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की है. चुनाव चिह्न साइकिल पर उनके हस्ताक्षर हैं, इसलिए ये उन्हें मिलना चाहिए. अखिलेश धड़े का दावा है कि पार्टी के 90 प्रतिशत सांसद, विधायक और पदाधिकारी उनके साथ हैं, इसलिए चुनाव चिह्न और पार्टी के नाम पर उनका हक है.

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