नई दिल्लीः सरकार डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए ‘कैश टैक्स’ भी लगा सकती है। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलती है तो इसे 1 फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट में जगह मिल सकती है। बैंक खातों से एक तय सीमा से अधिक कैश निकालने पर यह टैक्स लग सकता है। इस मामले में चल रही बातचीत की जानकारी रखने वाले बड़े सरकारी अधिकारियों ने बताया कि बड़े कैश लेन-देन को हतोत्साहित करने के उपायों पर भी बातचीत हो रही है। एक अधिकारी ने कहा कि इस बारे में आखिरी फैसला ‘शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व’ लेगा।
सरकार ने पिछले साल नवंबर में नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजैक्शंस बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं। एक अन्य अधिकारी ने बताया, ‘कैश टैक्स पर अभी विमर्श हो रहा है। बजट के साथ इसका ऐलान किए जाने की काफी संभावना है।’
कालेधन पर बनी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने 3 लाख रुपए से ज्यादा के कैश सौदों पर पाबंदी लगाने का सुझाव दिया था। उसने एक आदमी के लिए कैश होल्डिंग की 15 लाख रुपए की सीमा तय करने की भी सिफारिश की थी। पार्थसारथी सोम की अध्यक्षता वाले टैक्स ऐडमिनिस्ट्रेशन रिफॉर्म कमीशन (टीएआरसी) ने भी बैंकिंग ट्रांजैक्शन टैक्स (बीसीटीटी) को फिर से लगाने का सुझाव दिया था। उसने कहा था कि सेविंग अकाऊंट्स को छोड़ दें तो ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे बैंक खातों से निकाले जाने वाली रकम की जानकारी मिल सके। पिछले साल दिसंबर में डिजिटल पेमेंट में 43 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई थी।
अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि क्रैडिट कार्ड की सालाना फी, पॉइंट ऑफ सेल ट्रांजैक्शन चार्ज के चलते डिजिटल पेमेंट की एक कॉस्ट है लेकिन भारी मात्रा में कैश की लागत इकॉनमी के लिए उससे कहीं ज्यादा है। जनवरी 2015 में ‘कॉस्ट ऑफ कैश इन इंडिया’ नाम की एक स्टडी हुई थी। इसमें दावा किया गया था कि आर.बी.आई. और कमर्शल बैंकों के सालाना करेंसी ऑपरेशन की लागत 21,000 करोड़ रुपए है। मास्टरकार्ड की तरफ से यह स्टडी दूसरी एजेंसी ने की थी। नोटबंदी के बाद सरकार की तरफ से कहा गया है कि करंसी की कॉस्ट कम होने से अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। सरकार का यह भी कहना है कि डिजिटल पेमेंट बढ़ने से टैक्स चोरी भी कम होगी।
सरकार ने पिछले साल नवंबर में नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजैक्शंस बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं। एक अन्य अधिकारी ने बताया, ‘कैश टैक्स पर अभी विमर्श हो रहा है। बजट के साथ इसका ऐलान किए जाने की काफी संभावना है।’
कालेधन पर बनी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (एसआईटी) ने 3 लाख रुपए से ज्यादा के कैश सौदों पर पाबंदी लगाने का सुझाव दिया था। उसने एक आदमी के लिए कैश होल्डिंग की 15 लाख रुपए की सीमा तय करने की भी सिफारिश की थी। पार्थसारथी सोम की अध्यक्षता वाले टैक्स ऐडमिनिस्ट्रेशन रिफॉर्म कमीशन (टीएआरसी) ने भी बैंकिंग ट्रांजैक्शन टैक्स (बीसीटीटी) को फिर से लगाने का सुझाव दिया था। उसने कहा था कि सेविंग अकाऊंट्स को छोड़ दें तो ऐसा कोई तरीका नहीं है, जिससे बैंक खातों से निकाले जाने वाली रकम की जानकारी मिल सके। पिछले साल दिसंबर में डिजिटल पेमेंट में 43 प्रतिशत की बढ़ौतरी हुई थी।
अधिकारियों और विशेषज्ञों का कहना है कि क्रैडिट कार्ड की सालाना फी, पॉइंट ऑफ सेल ट्रांजैक्शन चार्ज के चलते डिजिटल पेमेंट की एक कॉस्ट है लेकिन भारी मात्रा में कैश की लागत इकॉनमी के लिए उससे कहीं ज्यादा है। जनवरी 2015 में ‘कॉस्ट ऑफ कैश इन इंडिया’ नाम की एक स्टडी हुई थी। इसमें दावा किया गया था कि आर.बी.आई. और कमर्शल बैंकों के सालाना करेंसी ऑपरेशन की लागत 21,000 करोड़ रुपए है। मास्टरकार्ड की तरफ से यह स्टडी दूसरी एजेंसी ने की थी। नोटबंदी के बाद सरकार की तरफ से कहा गया है कि करंसी की कॉस्ट कम होने से अर्थव्यवस्था को फायदा होगा। सरकार का यह भी कहना है कि डिजिटल पेमेंट बढ़ने से टैक्स चोरी भी कम होगी।
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