मंदिर…..एक ऐस स्थान जहां जाकर इंसान कुछ पल के लिए दुनिया की सारी चिंताओं से मुक्त हो जाता है। उसे अध्यात्म औऱ शांति की अनुभूति होती है।आप मंदिर जाते तो हैं लेकिन कभी सोचा है कि मंदिर शब्द का वास्तविक अर्थ क्या होता है? कैसे हुई इस शब्द की रचना? आइये जानते हैं मंदिर का अर्थ।
1.मंदिर का अर्थ
मंदिर शब्द के अर्थ के बारे में कहा जाता है कि ये शब्द ‘मन’ और ‘दर’ की संधि है |
मन + दर
मन अर्थात मन
दर अर्थात द्वार
मन का द्वार तात्पर्य यह कि जहाँ हम अपने मन का द्वार खोलते हैं, वह स्थान मंदिर है।
2.जहां मैं नहीं
म अर्थात मम = मैं
न अर्थात नहीं
न अर्थात नहीं
अर्थात जिस स्थान पर जाकर हमारा ‘मैं’ यानि अंहकार ‘न’ रहे वह स्थान मंदिर है। कहा जाता है कि इश्वर हमारे मन में होते हैं। अत: जहाँ ‘ मैं ‘ ‘न’ रह कर केवल ईश्वर हो वह स्थान मंदिर है।
3.मंदिर का अर्थ होता है
मन से दूर कोई स्थान। मंदिर का शाब्दिक अर्थ ‘घर’ है और मंदिर को द्वार भी कहते हैं- जैसे रामद्वारा, गुरुद्वारा आदि। मंदिर को आलय भी कह सकते हैं जैसे की शिवालय, जिनालय।
4.मंदिर को अंग्रेजी में मंदिर ही कहते हैं टेंपल नहीं
लेकिन जब हम कहते हैं कि मन से दूर जो है वह मंदिर तो, उसके मायने बदल जाते हैं। मंदिर को अंग्रेजी में मंदिर ही कहते हैं टेम्पल नहीं। जो लोग टेम्पल कहते हैं वे मंदिर के विरोधी हो सकते हैं।
5.आलय सिर्फ शिव का होता है
‘द्वारा’ किसी भगवान, देवता या गुरु का होता है। ‘आलय’ सिर्फ शिव का होता है और मंदिर या स्तूप सिर्फ ध्यान-प्रार्थना के लिए होते हैं। लेकिन वर्तमान में उक्त सभी स्थान को मंदिर कहा जाता है जिसमें की किसी देव मूर्ति की पूजा होती है
6.मन से दूर रहकर ईश्वर की पूजा
मन से दूर रहकर निराकार ईश्वर की आराधना या ध्यान करने के स्थान को मंदिर कहते हैं। जिस तरह हम जूते उतारकर मंदिर में प्रवेश करते हैं उसी तरह मन और अहंकार को भी बाहर छोड़ दिया जाता है।
7.भगवान प्रार्थना से प्रसन्न होते हैं पूजा से नहीं
जहां देवताओं की पूजा हो उसे देवरा या देव-स्थल कहा जाता है। जहां पूजा होती है उसे पूजा स्थान, जहां प्रार्थना होती है उसे प्रार्थनालय । कहा जाता है कि भगवान प्रार्थना से प्रशन्न होते हैं पूजा से नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें