हर साल 13 जनवरी को सूर्य के उत्तरायण होने की खुशी में लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार के पीछे कई कारण हैं लेकिन इस पर्व में गजक, मूंगफली और रेवरियां अग्नि में डालने की परंपरा के पीछे एक ही मान्यता सामने आती है। अगर आप इसका कारण जानेंगे तो आप भी इस परंपरा को बड़े ही उत्साह से मनाएंगे।
ऐसी मान्यता है कि भगवान भगवान श्री कृष्ण के समय से ही लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। इस विषय में एक कथा है कि भगवान श्री कृष्ण के जन्म बाद कंश ने श्री कृष्ण को मारने की बहुत कोशिश की और इसके लिए कंश ने कई असुरों और राक्षसों को गोकुल भेजा। इस क्रम में कंश ने एक लोहिता नाम की राक्षसी को गोकुल भेजा था।
जब लोहिता गोकुल आई तब सभी गांव वाले मकर संक्रांति की तैयारी में व्यस्त थे क्योंकि अगले दिन मकर संक्रांति का त्योहार था। मौके का लाभ उठाकर लोहिता ने श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया लेकिन श्री कृष्ण ने खेल ही खेल में लोहिता का वध कर दिया। जब नंद बाबा, यशोदा और गांव वालों ने राक्षसी के मृत शरीर को देखा तो सूर्य देव का उपकार मानते हुए लकड़ियों का ढेर लगाकर अग्नि को प्रज्वलित किया और अग्नि में चावल, मूंगफली, तिल से बनी चीजें जैसे रेवड़ियां और गजक डालकर आंनद मनाने लगे।
कहते हैं इस तरह से लोहड़ी का त्योहार मनाया जाना शुरु हुआ। इस संदर्भ में एक अन्य मान्यता भी है जो इससे थोड़ा हटकर है। दरअसल सूर्यदेव को प्रकृति में अन्नदाता माना जाता है। इनके कारण ही कृषि उन्नत और समृद्ध होती है इसलिए जब घर में नई फसल तैयार होकर आती है तो सबसे पहले इन्हें भेंट किया जाता है।
ऐसी मान्यता है कि अग्नि में जब कुछ भी भेंट स्वरूप डाला जाता है तब वह यज्ञ भाग के रूप में देवताओं के पास पहुंच जाता है। यही कारण है कि नए चावल, मूंगफली, गुड़, तिल से तैयार रेवड़ी और गजक जो इस समय होते हैं उन्हें अग्नि में डालकर सूर्य देव और अग्नि देव का धन्यवाद किया जाता और माना जाता है कि ऐसा करने से अगली फसल भी अच्छी होगी और घर में समृद्धि आती है।
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