कहते हैं नारी को भगवान भी नहीं समझ पाएं, तो इंसान क्या चीज है। उसके बारे में ऐसा भी कहा जाता है कि उसे समझना औऱ सुलझना बहुत मुश्किल है। कहा जाता है भगवान जब स्त्री की रचना कर रहे थें, तब उन्हे इतना समय लग गया कि देवदूत भी उनसे सवाल करने लगे थें कि आखिर आपको इतना समय क्यों लग रहा है? देवदूतों के इस प्रश्नन का भगवान ने क्या उत्तर दिया आइये जानते हैं…
देवदूतों के इस प्रश्न के जवाब में भगवान् ने उतर दिया कि क्या तुमने इसके गुण देखे है ? ये मेरी वो रचना है जो हर हालत में डटी रहती है और खुद को संभाले रखती है। फिर स्थिति चाहे कैसी भी हो ये सबको खुश रखती है । अपने परिवार और सब बच्चो को एक सा प्यार करती है । ये न केवल अपना ख्याल खुद रखती है बल्कि बीमार होने के बावजूद भी 18 घंटे काम करने की क्षमता रखती है । तो हुई न ये गुणों से भरपूर ।
इस प्रश्न के जवाब में भगवान ने जवाब दिया बिलकुल ! इसलिए तो ये मेरी सबसे अध्भुत रचना कहलाएगी। ये सब सुन कर ,देवदूत ने पास जाकर भगवान की बनाई इस रचना को जब हाथ लगाया तो उन्होंने कहा कि प्रभु ये तो बहुत नाज़ुक है तो भगवान ने हंस कर कहा कि हा ये बाहर से नाज़ुक जरूर है पर अंदर से उतनी ही मज़बूत है। अर्थात ये कोमल है पर कमज़ोर नहीं ।
देवदूत इस रचना को लेकर काफी उत्साहित थे तो वो उत्साहित होकर ये पूछ बैठे कि प्रभु क्या ये सोच भी सकती है ? तो प्रभु ने कहा ये न केवल सोच सकती है बल्कि हर समस्या का मुकाबला करने की क्षमता भी रखती है। इसके बाद देवदूत ने जो किया उसे पढ़ कर आप भी भावुक होने पर मज़बूर हो जायेगे ।
दरअसल देवदूत ने जब पास जाकर स्त्री के गालों को हाथ लगाया तब उन्हें कुछ पानी जैसा प्रतीत हुआ तो उन्होंने पूछा कि “हे भगवान्” ये इसके गालों पर पानी जैसा क्या है ? भगवान् ने कहा ये आंसू है। तब देवदूत ने बहुत ही हैरान होकर “पूछा आंसू ” पर वो किसलिए ? इस पर भगवान ने कहा “जब भी कभी ये कमज़ोर पड़ने लगे तब ये अपनी सारी पीड़ा आंसुओ के साथ बहा देती है और फिर से मजबूत बन जाती है। अर्थात अपने दुखो को भुलाने का इसके पास ये सबसे बेहतर तरीका है।”
भगवान् ने कहा ये स्त्री रूपी रचना हमेशा अपने परिवार की हिम्मत बनेगी और हर परिस्थिति में निश्छल रह कर ही समझौता करेगी। इसके बाद देवदूत ने जब ये कहा कि भगवान। आपकी रचना सम्पूर्ण है तो भगवान ने जवाब दिया कि नहीं अभी इसमें एक कमी है और वो ये कि “ये अपना ही महत्व भूल जाती है कि ये कितनी खास है और इसमें क्या क्या गुण है।”
भगवान की स्त्री रुपी रचना जो खुद का महत्व भूल कर आपको महत्वपूर्ण बनाती है, उस रचना को तिरस्कृत करना कहां तक उचित है? जिस समाज को वो प्यार से सींचती है, उसी समाज में उस पर अत्याचार कहां तक उचित है? दुनिया के सबसे गुणवान और ईश्वर के इस अनमोल रचना को हमें सम्मान देना चाहिए। उसके महत्वों को समझना चाहिए क्योंकि स्त्री नहीं होगी, तो ना आप होंगें औऱ ना ही हम, ना तो ये दुनिया होगी और ना ही ये दुनियादारी।
रविवार, 20 नवंबर 2016
‘स्त्री’ की रचना के समय हुआ कुछ ऐसा कि भगवान उलझ गए सवालों के भंवर में, पढ़ें ये रोचक कथा
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ज्योतिष
पढ़ाई का विषय हमेशा साइंस रहा। बी एससी इलेट्रॉनिक्स से करने के बाद अचानक पत्रकारिता की तरफ रूझान बढ़ा। नतीजतन आज मेरा व्यवसाय और शौक
दोनों यही बन गए।
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शनिवार 13 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह!खूबसूरत सृजन ।
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