नई दिल्ली : भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी की आज 100वीं जयंती है। इंदिरा गांधी के बारे में बहुत ऐसी बातें फैली हुई है जिसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है। लेकिन आज हम आपको इंदिरा गांधी के जीवन के वास्तविकता से परिचय कराने जा रहे हैं।
महात्मा गांधी ने फिरोज को नहीं दिया था अपना सरनेम?
इंदिरा नेहरू के फिरोज से शादी के फैसले से जवाहर लाल नेहरू बहुत ही नाराज थे। कारण था उनका पारसी मुसलमान होना। इस बारे में कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने फिरोज को अपना सरनेम देकर नेहरू को मना लिया। लेकिन वास्तव में कुछ और ही है।
लेखक राम चंद्र गुहा कि किताब ‘इंडिया आफ्टर गांधी दी हिस्ट्री आफ वर्ल्ड लारजेस्ट डेमोक्रेसी’ में उन्होंने लिखा है कि इलाहाबाद में स्वतंत्रता संग्राम में भाग ले रहे फिरोज ने इंदिरा गांधी से मुलाकात के कई साल पहले ही अपना सरनेम बदल लिया था। उस समय फिरोज ने अपने नाम के बाद Ghandy लिखते थे जिसे बाद में उन्होंने स्पेलिंग बदल ghandhi लिखना शुरू कर दिया।
रविन्द्र नाथ टैगोर ने नहीं दिया था प्रियदर्शिनी नाम?
इसी तरह उनके प्रियदर्शिनी नाम के बारे में कहा जाता है कि इंदिरा को ये नाम रविन्द्र नाथ टैगोर ने दिया था। लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है।
बात इंदिरा के जन्म से कुछ समय बाद की है। दादा मोतीलाल नेहरू पोती का नाम इंदिरा रखना चाहते थे और जवाहर और कमला नेहरू प्रियदर्शिनी। फिर तय हुआ कि दोनों नाम मिलाकर नाम रखा जाए। इस तरह नेहरू परिवार की इस बेटी का नाम प्रियदर्शिनी इंदिरा रखा गया।
स्टूडेंट्स के लिए प्रेरणा हैं इंदिरा गांधी
इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को हुआ था और वह 31 अक्टूबर 1984 तक जीवित रहीं। इस वर्ष पूरा देश और खास तौर पर कांग्रेस पार्टी उनकी जन्मशती मनाने में लगा है। ऐसे में एक सामान्य नागरिक और खास तौर पर स्टूडेंट्स उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।
छोटी उम्र से ही लक्ष्य प्राप्ति में लग जाना
इंदिरा भले ही तब के मशहूर बैरिस्टर मोती लाल नेहरू की पोती और कांग्रेस के लोकप्रिय नेता जवाहर लाल नेहरू की बिटिया हों, मगर उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए छोटी उम्र में ही वानर सेना बना ली थी। वह इसके माध्यम से झंडा जुलूस, विरोध प्रदर्शन के साथ-साथ कांग्रेसी नेताओं के संवेदनशीन प्रकाशनों और प्रतिबंधित सामग्रियों का परिसंचरण करने का काम करती थीं।
पहले पढ़ाई और बाद में लड़ाई
इंदिरा को जानने वालों का मानना है कि इंदिरा हमेशा से ही खुद को बड़ी भूमिकाओं के लिए तैयार कर रही थीं। उन्होंने शांति निकेतन के साथ-साथ ऑक्सफोर्ड और सोमरविल्ले कॉलेज में पढ़ाई की। हालांकि वह वहां भी भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्षरत भारतीय लीग की सदस्या बन कर काम करती रहीं।
कभी गूंगी गु़ड़िया तो बाद में दुर्गा
जवाहर लाल नेहरू की मौत के बाद लाल बहादुर शास्त्री देश के प्रधान मंत्री बने। उनके आकस्मिक मृत्यु के बाद इंदिरा ने देश की बागडोर संभाली। उन दिनों वह काफी कम बोला करती थीं। विपक्ष की राजनीति करने वाले मोरारजी देसाई और डॉ लोहिया ने उन्हें गूंगी गुड़िया तक कहा। हालांकि भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण में महत्वपूरण भूमिका अदा करने पर अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विपक्षी नेताओं ने उन्हें दुर्गा कह कर संबोधित किया।
देश को रखा हमेशा आगे
इंदिरा को देश हमेशा एक ऐसी नेत्री के तौर पर याद करता है जिनके लिए देश पहले है। हालांकि इस क्रम में उन पर कई आरोप भी लगते हैं कि उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया। चुनाव में कदाचार किया लेकिन बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स जैसे फैसलों के लिए देश हमेशा उनका शुक्रगुजार रहेगा।
फैसले लेने में हमेशा आगे
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि वह गजब की राजनेता थीं। चाहे देश में आपातकाल लगाने का निर्णय हो या फिर पंजाब में अलगाववादियों पर किए जाने वाले हमले। एक बार निर्णय करने के बाद वह पीछे नहीं हटती थीं। उनकी मौत के पीछे उनका अलगाववादियों से निपटने का निर्णय भी अहम कारक माना जाता है।
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